कविता
जम्हूरियत की पुकार
सत्ताधारी सता रहे जनता का ख़ून चूस रहे मौन तुम्हारी कब टूटेगी जब लूट जाएगी कौमें जम्हूरियत वक्त…
सत्ताधारी सता रहे जनता का ख़ून चूस रहे मौन तुम्हारी कब टूटेगी जब लूट जाएगी कौमें जम्हूरियत वक्त…
संतुलन बनाए रखिए यह धरा भी घर है तुम्हारा इस घर को सजाएं रखिए फेल रहा जो प्रदूषण आज प्लास्टिक परम…
बिजूका / काक भगौड़ा निरंतर खड़ा रहता है जो खेत में लेकर के सन्यास , न रोटी चाह…