यह धरा भी घर है तुम्हारा
इस घर को सजाएं रखिए
फेल रहा जो प्रदूषण आज
प्लास्टिक परमाणु से यहां
है गंभीर समस्या यह भारी
इस को समाप्त करने का
एक कारण बनाए रखिए
यह धरा भी घर है तुम्हारा
संतुलन बनाए रखिए ।।
अपने व्यस्थ जीवन में भी
प्रकृति को हिस्सा बनाएं
नव निर्माण करे बेहतर
जीवन काल समाप्त होने से
पहिले एक वृक्ष अवश्य लगाएं
सींच कर जल से पुण्य कमाओं
शुद्ध वायु का प्रभाव बना रहेगा
धरा पर आपके जाने के बाद
यह धरा भी घर है तुम्हारा !
संतुलन बनाए रखिए ।।
प्रतिभा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
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कविता