मन का पक्षी उड़े नील गगन में,
तिनका लाया ख्वाबों का चुनकर।
स्वर्ग से सुन्दर सपनो सा प्यारा,
बनाया अभिलाषित सुन्दर घोंसला।
कठिन परिश्रम करता मन बेचारा,
उड़कर जाता रोज बादलों के पार।
लेकर दिल मे एक मजबूत हौसला,
इतराता था मन ही मन करके गुरुर।
अपने सपनों को सच करने का फैसला,
अपनी ही धुन में रोज उड़ता अम्बर पर।
नित उड़ता ऊँचे गगन में अलबेला,
मधुर पवन के संग उड़ता निरंतर।
सपनों सहित बर्बाद हो गया घोंसला,
जीवन मे आया एक बवण्डर।
मन का पक्षी धरती पर तड़पता अकेला,
सुन्दर सपनों का घोंसला गया बिखर।
मन की अभिलाषायें सारी भुला,
दुबारा अपने अरमानों के पंख लगाकर।
जुटाया नए घोसलें बनाने का हौसला,
तिनका चुन-चुन लाने उड़ चला अम्बर पर।
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🌹समाप्त🌹
स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री-:शशिलता पाण्डेय
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कविता