जंजीरों में मेधावी जकड़े , दानव ठेकेदार है।
शिक्षा को व्यवसाय बनाकर,बेच रही सरकार है।।
भारत ज्ञान-भूमि कहलाया,भूमंडल पर सदियों से।
उसी ज्ञान -मंदिर में आज चरम पर भ्रष्टाचार है।।
शिक्षक बने पुजारी कैसे ,विद्या-मंदिर चोरों का।
चूरन फांक सांस ले रहा , फंसा हुआ मझधार है।।
धन से जिनका रिश्ता है,वह विद्या-मंदिर का मालिक।
डिग्री का इन सभी दुकानों में , होता व्यापार है।।
रोज मान्यता देते हैं वे , रेवड़ी बांट रहे जैसे।
मानक को ठेंगा दिखलाते,रिश्वत का बाजार है।।
चोर-लुटेरे नहीं लजाते, महामना की तुलना में।
पढ़े-लिखे लोगों का शोषण,करता एक गंवार है।।
प्रतिपूर्ति में अरबों रुपए का ,षडयंत्र घोटाला है।
काला धन सफेद करने का,बहुत बड़ा औजार है।।
तय था जितना शिक्षा पर व्यय,आधा भी तो नहीं किया।
'कर' लेने का इनका फिर, कैसे बनता आधार।।
इतने व्यापक स्तर पर क्यों,मॉल खुल रहे डिग्री के।
कोठे पर जा बैठी शिक्षा,रोज हुआ व्यभिचार है।।
ज्ञान और गुरु दोनों को, स्वाधीन करेगा कौन यहां।
महासभा में जाकर बैठा , इन सबका सरदार है।।
"अनंग"
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कविता