No title


देखा मैं !

कमरा वीरान है !
मैदान सुनसान है,
न कहीं शोर ;
न खिलखिलाहट,
न शिक्षकों की आहट ,
कमरों में जालें लटकी हुई है।
देखा मै !
ऐसा लग रहा
गमलों की लताएँ भटकी हुई है।
लगायी दूब;प्यास से सुख गयी हैं ;
न ओस की बूँदे चिपकी हुई ; 
शायद अपनों ने दूरी बना ली है।
देखा मैं !
दरवाजों पर
टेबल के दराजों पर
अधिकार जताते हुए
सूक्ष्म जीव 
अपने घर बनाने लगे।
इधर
नगर में ; गाँव में
घर उजड़ने लगे ;
लोग अपनों से बिछुड़ने लगे
सृष्टि की 
गतिशीलता टूटने लगी।
ऐसे लग रहा ;
मानों सब पथ से बिछुड़ने लगे हैं।
आपस मे मुँह छिपाए
सन्देह आशंका जताते हुए
अपनत्व भी दिखाने लगे हैं ।
समय बदलेगा या दौर ठहरेगा
सवालों की लकीरें
माथे पर अब आने लगे हैं।

              विजय पंडा
      घरघोड़ा जिला रायगढ़
    छ0 ग0 - 9893230736

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form