पिता का नाम है पगड़ी ,
पहन कर जब चलें घर से ।
लक्ष्य तक भी सदा पहुँचे ,
ना घवराएँ किसी डर से ।
सुलभ सरंक्ष प्रेरक हैं ,
जनक परिवार-ए अनुशासन ,
मिले संस्कार तन-मन को ,
दया के भाव हरि स्वर से ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )
Tags:
कविता