जग का मंगल हो
हिंदी का विस्तार हो
दुर्भावना मिटे
हिंदुत्व का मान हो
भारतीय सभ्यता संस्कृति
संरक्षित रहे
एकता अखंडता
हमारे देश की सुरक्षित रहे
केसरिया ध्वज
लहराता रहे
तिरंगा की
शान रहे
विश्व करे अभिवादन
विश्व गुरु का भान रहे
अनीति के विरुद्ध लड़ेंगे
धर्म की स्थापना करेंगे
संगठन का मंत्र
दिन रैन जपेंगे
हम संस्कृत
का अध्ययन कर
गुणवान बनेंगे
हम हिंदी का
विकास करेंगे
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मैं घोषणा करता हूं कि यह भाव मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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भास्कर सिंह माणिक "कोंच"