चुनाव आयोग बिना दांत और रीढ़ का शेर

आयोग बिना दांत और रीढ़ का शेर 
केंद्रीय चुनाव आयोग (कें चु आ )वास्तव में बिना रीढ़ और दांत का शेर !---- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल/पुणे 


            पश्चिम   बंगाल  पोलिंग  २०२१ : कलकत्‍ता  हाई कोर्ट की खिंचाई के बाद  चुनाव   आयुक्त  ऐक्‍शन में, 16 को बुलाई सभी राजनीतिक दलों की मीटिंग, कोरोना नियमों की होगी समीक्षा
           क्या चुनाव आयोग को इतनी शक्ति हैं प्रधान मंत्री की विरुद्ध कुछ बोलने की .मतदान के बाद   परिणाम निकलने तक कुछ नहीं होगा .          कभी कभी शब्दों के मायने खुद अर्थ बता देते हैं .जैसे केंद्रीय चुनाव आयोग यानी कें चु आ यानि केंचुआ जो की बिना रीढ़ का कृमि  होता हैं और वह गीली मिटटी में  रेंगता हैं ,भाग नहीं सकता .इसका शरीर कई खण्डों में बंटा रहता हैं केंचुआ का तीन चौथाई भाग शरीर की दीवार से अंदर गड़ा रहता हैं  और थोड़ा सा हिस्सा बाहर होता हैं.केंचुए पृथ्वी  के अंदर १ फुट की गहराई तक रहते हैं .यह अधिकतर पृथ्वी पर पाई जाने वाली सड़ी पत्ती ,बीज ,छोटे कीड़ों के डिम्भ और अंडे इत्यादि कहते हैं .ये जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं और उपज भी .
                                 उपरोक्त विवरण से यह प्रतीत होता हैं की हमारा  केंद्रीय चुनाव आयोग की दशा यही हैं .पहली बात वह बिना रीढ़ का और दंतहीन शेर जैसा हैं ,गुर्राता हैं पर काट नहीं सकता ,या दूसरे शब्दों में सर्कस का शेर हैं जो रिंग मास्टर के कोड़े पर या इशारे पर चलता हैं ,उसको अपनी शक्ति का अहसास  नहीं हैं कारण वह पालतू बन जाता हैं या स्वाभी भक्त श्वान जैसे पहले एच एम् वी यानी हिज मास्टर्स वौइस् या अपने मालिक का स्वामिभक्त पालतू श्वान .के रिकॉर्ड होते थे वैसा ही हैं 
                                   वह इतना बफादार होता हैं की और परजीवी की अपने मालिक के टुकड़ों पर पलता हैं और मालिक के इशारे पर नाचता हैं ,अपने मन का उपयोग नहीं कर सकता हैं .यह स्थिति केंचुआ की ही नहीं जितनी भी सर्वोच्च संस्थाएं हैं वे सब रिंग मास्टर के इशारे पर नाच रही हैं इस समय रिंग मास्टर बहुत शक्तिशाली हैं जिसने अपने प्रभाव का उपयोग कर सबको अपना परजीवी बनाया हैं या बना लिया हैं .आज उसके विरोध में किसी की ताकत नहीं हैं जो उसका विरोधकर सके .इससे यह फायदा हुआ हैं की वह जितनी अच्छे कामकरता  हैं उनका  श्रेय खुद ले लेता  हैं और यदि गलत हुआ तो उनकी गर्दन मरोड़ देता हैं कारण वे सब संस्थाएं उसकी पालतू कुत्ते जैसी हैं .
                                  जैसा समाचार मिला की आचार चुनाव संहिता के उल्लंघन के मामले में रिंग मास्टर के विरुद्ध निर्णय   दो-- एक से पारित हुआ .वह कौन सा व्यक्ति या सदस्य  होगा जिसने उनका विरोध किया ?,अब उसको अपने दुष्परिणाम भोगने के लिए तैयार होना होगा ,यदि सत्ता वापिसी हुई तो उसको वहां पर रहना मुश्किल होगा .आज तक जितने भी कें चु आ ने जिन जिन के विरोधमें निर्णय  लिए वे कितने प्रभावशील हुए और कितनो ने क्रियान्वयन किया .इसका मतलब साफ़ हैं की केचुआ रीढ़ और दन्त विहीन शेर जैसा हैं, शेर नहीं हैं .
                               आज देश में बहुत विचित्र स्थिति निर्मित हो गयी हैं जो अस्थायी सेवक यानी नेता मंत्री, प्रधान मंत्री,मुख्यमंत्री  उनसे स्थायी सेवक इतना डरते हैं जैसे  वे स्थायी  सेवक उनके गुलाम हों .अरे वे पांच वर्ष के लिए आते हैं और मौज मस्ती करके चले जाते हैं और ये अस्थायी नेता ऐसा जुल्म ढाते हैं जैसे वे पालक हो .इसी केंचुआ में शेषन जैसा शेर रहा जिसने अपनी  शक्ति और उनके क्रियानवयन को करके बताया और दिखाया .आज कितनों को इतनी हिम्मत हैं रिंग मास्टर के सामने साहस दिखाने की ?.आज सब संस्था  प्रमुख रिंग मास्टर के सामने केंचुआ बने हैं .इतनी कायरता या पराधीनता तो आपातकाल में नहीं लगी थी. 
                                   यहाँ चीन्ह चीन्ह कर रेवड़ी बाँट रहे हैं ,किसी की अपराध को बड़ा और किसी को नगण्य मानकर खाना पूर्ती कर रहे हैं .केंचुआ जरूर बिना रीढ़ का होता हैं पर उसके पास चलने फिरने की छूट रहती हैं  पर केंद्रीय चुनाव आयोग  वर्तमान में अपने मष्तिष्क का भी उपयोग नहीं कर सकता हैं वह परजीवी हो चूका हैं ,उसका कोई भी स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हैं वह अदृश्य शक्ति के द्वारा संचालित हैं और जितना काम कहते हैं उतना करता हैं .यानी विवेक हीन हो चूका हैं .
                                  ये सब देश की अवनति की निशानी हैं और रिंगमास्टर अपने मुँह मिया मिठ्ठू बन गए .उनको परनिंदा करने में अतीव आनंद होता हैं और मिलता हैं .उसका कारण जैसे उनके संस्कार और कुछ नहीं .एक बात ध्यान रखना होगा सबके दिन एक समान नहीं होते ,और इस समय रिंग मास्टर का पुण्य का उदय हैं तो कोड़ा चल रहा हैं अन्यथा सुबह जिनका राज तिलक होने वाला था उन्हें वनवास जाना पड़ा इसीलिए जब सत्ता मिली हैं तो उसका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा जाने के बाद विशेषण का उपयोग  करते हैं .
                                   वो क़त्ल भी करते हैं चरचा नहीं होती .
                                  हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम .
                                  जब तुम जगत में ,जगत हंसा तुम रोये ,
                                 अब तुम ऐसी करनी करो की ताकि हंसी न होय 
                                   ये सत्ता का नशा, नशा नहीं होता 
                                  कभी सोचा हैं नशा का उल्टा नाश होता हैं 
                                   साक्षर यदि बिगड़ जाए तो राक्षस हो जाता हैं 
                                    नदी में जल न हो तो दीं हो जाती हैं 
                                     नाली में पानी न हो तो लीन हो जाती हैं .
                                    क्षणिक सुख के लिए जिंदगी भर का बिगाड़ क्यों 
                                     शतरंज की सब गोटियां खेलने के बाद एक साथ हो जाती .सोचो 
             विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753 
सी ३/५०४ कुंदन एस्टेट कांटे बस्ती पिम्पले सौदागर पिम्पले सौदागर पुणे 411027

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form