यै माँ तुम्हारी लोरियां सुनने का जी चाहता है
यै माँ तुम्हारी गोद में सोने का जी चाहता है
तुम्हारे कोमल हांथों की थपकियों का जी चाहता है
राज, रानी की सुन्दर कहानियाँ सुनने का जी चाहता है
कोमल हांथों से मीठा कौर खाने का जी चाहता है
तुम्हारा निस्वार्थ प्यार पाने को जी चाहता है
रूठ कर तुमसे नखरे उठाने को जी चाहता है
तुम्हारी गोदी में बैठ कर दुलराने का जी चाहता है
तुम्हें माँ माँ कहकर पुकारने का जी चाहता है
चरण रज को मस्तक पर लगाने का जी चाहता है
हर पल तुम्हारे साथ बिताने का जी चाहता है
एक बार तुम्हारे दर्शन को जी चाहता है
तुम्हारा आशीर्वाद पाने को जी चाहता है
विद्या शंकर अवस्थी पथिक
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कविता