बेदिली का दौर
क्यों न जाने ,आजकल बेचैन सा है दिल?
खो गई खुशियाँ ,कहाँ, ग़म की घटा हासिल !
अखबार भी पढ़ना, ही कैसे, हो रहा मुश्किल!
क्या पता किस पृष्ठ पर है पढ़ने के काबिल?
रंग चुके अखबार भी, कर वे खबर शामिल,
हत्या डकैती रेप से धरती रही है हिल!
क्यों न जाने हो रहा, मन में ही यह संदेह?
घातकों पर वोट की खातिर लुटाते स्नेह?
तोड़ कर खुश हो रहे हैं जो कि अपना गेह!
है तो कुछ भी राज इनका क्या है ऐसा ध्येय?
समझ बैठे हैं ये अपने आप को अजेय!
कर्म इनका हीन है ये हैं बहुत ही हेय!
जाग जाओ देश प्रेमी क्या रहे हो सोच?
उड़ रहा है गिद्ध फैला कर बड़ा सा चोंच!
फाड़ कर दो फेंक ले ना अब सके वह नोंच!
आत्मरक्षा के लिए करना नहीं संकोच!
देश हित सबसे है पहले दुखी के आँसू पोंछ!
अब न होवे घाव दिल में और पग में मोच!!
पद्ममुख पंडा
वरिष्ठ नागरिक कवि लेखक एवम् विचारक
ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छ ग
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कविता