छिपे सब हैं यहॉं
काव्य के पाठी
डरे सब हैं यहाँ
मंच पर सहमे हुए
कुछ हैं खड़े
हर तरफ
लाठी ही लाठी है यहाँ
राम तेरे राज्य में
धोबी बहुत
सीता रहती
जंगलों में हैं यहाँ
घोड़े सब हैं मर रहे
दाने बिना
खच्चरों पर
काठी ही काठी है यहाँ
स्वरचित
@डॉ आर के तिवारी"मतङ्ग"
लखनऊ
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कविता