मिट्टी का तन तेरा

मिट्टी का तन तेरा 
मिट्टी से क्या डरना 
कल को यहां सबको 
उसमें ही है मिलना ।

रिश्ते नाते यादों का झरोखा
जीवन का है लेखा-जोखा
रहता जाता साथ नहीं कुछ 
खाली जाता है ये खोखा ।

मिले कितने ही गले लगाके 
बिछड़े कितने मुंह बिचका के
काल कुचक्र से थे ग्रसित 
यादे रह जाते सब बनके ।

               ___संजय निराला 

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