जो कहते थे मुझे अपने
यादें उनके पास मेरे अब
वो सुदूर जैसे थे सपने ।
वादों का निकला जनाजा
कालका कैसा है तकाजा
आंखों को अब नींद नआती
दिल पुकारे अब तो आजा ।
कहने को बात बहुत है
सुदूर सही जज्बात वही है
कैसे हो तुम इतना बता दो
अपना तो हालात वही है ।
प्रेम अपना सृष्टि जनित है
मैं बादल तू ही धरती है
तेरा दर्द छुपा न मुझसे
तूही हरदम छुपती रहती है ।
___संजय निराला
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कविता