कोरोना में कैसे जीना है
यह हमको भी बतलाओ माँ
कवि भाइयों को मार रहा है
इसको भी मार भगाओ माँ
कोई दोष नहीं कवियों का
ये तो समाज के सेवक हैं
कवियों को क्यों मार रहा है
कवियों के प्राण बचाओ माँ
कोरोना से कोई बैर नहीं
फिर ये क्यों हम सबको
है मार रहा
दुश्मन से दुश्मन लड़ता है
कवियों की कोई दुश्मनी नहीं
फिर ये क्यों पीछे पड़ा हुआ
क्या ये कवियों से डरता है
अब तो माता बहुत हो गया
इसका तुम संहार करो
हांथों में लेकर खप्पर को मां
रक्त बीज का रक्त पियो
ये है कलियुग का रक्त बीज
जितना मारो उतना बढ़ जाता है
वैक्सीन आने पर भी
उससे ये नहीं घबड़ाता है
विनती करता हूँ मैं माँ तुमसे
हम सबका कल्याण करो
कोरोना का अन्त करो
हम सब पर मां उपकार करो
कवि विद्या शंकर अवस्थी पथिक
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कविता