मां एक रूप अनेक, हर रूप का है अलग अलग काम,
नवरात्रि में नौ रूपों वाली माता को, कोटि कोटि प्रणाम।
हर रूप में आदिशक्ति, पाप, अधर्म का विनाश करती,
पुण्य और धर्म के साथ महादेवी, जोड़ती अपना नाम।
मां एक रूप अनेक……………
माता रानी हर रूप में, अपने भक्तों को देती है वरदान,
असुरी शक्तियों को मिटाना जग से, माता की पहचान।
माता रानी हर असंभव को, संभव कर दिया करती,
हर साल नवरात्रि में देती है, इस जग को नव पैगाम।
मां एक रूप अनेक………….
जो कोई माथा टेकता है, जाकर माता रानी के दरबार में,
वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जीवन संसार में।
माता रानी अंजाने में हुई, हर गलती माफ कर देती है,
भक्तों को सुनहरी सुबह देती है, और देती सुहानी शाम।
मां एक रूप अनेक………….
माता रानी करती है साधकों पर, हर रूप में मेहरबानी,
भक्तों के जीवन से, मिटा देती है मां हर एक परेशानी।
पाप अधर्म को जीना मुश्किल कर दिया करती भवानी,
पुण्य और धर्म को, इस धरती पर करने देती है आराम।
मां एक रूप अनेक……………
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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कविता