माँ आराधन
जय-जय-जय हे मातु भवानी ।
महिमा तेरी अगम न जानी ।
तीन लोक की तू महरानी ।
वेद पुराणन कहत बखानी ।
शंख मृदंगम डमरू बाजत ।
नाचत,जन-मन ढोल बजावत ।
राग-ताल सुर साथ सजाकर ।
मातु रिझावत वंदन गाकर।
शील हमें माँ ही दे पाई ।
कर्मठता हमको सिखलाई ।
जीवन का भी पाठ पढ़ाया ।
सहना दुख भी हमें सिखाया ।
प्रमिला श्री 'तिवारी'
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कविता