प्यासा चकवा तरस रहा बारिश की कुछ बूंदों को ।
सूखी धरती सूखे उपवन तरस रहे बारिश की बूंदों को ।।
काली घटा देख मन मुसकाये नन्ही नन्ही बूंदों को ।
मन में चंचलता छा जाये देख बारिश की कुछ बूंदों को ।।
नव यौवन भी ले अंगड़ाई भरमाये देख बारिश की बूंदों को ।
प्रकृति भी हरषाई देख बारिश की कुछ मोटी मोटी बूंदों को ।।
नदियां झरने कल कल गाने लगे देख बारिश की कुछ बूंदों को ।
चलतीं हवा के झोंके से मुस्काने लगे देख बारिश की बूंदों को ।।
सूर्य देव भी इन्द्र धनुष बनाने लगे देख बारिश की कुछ बूंदों को ।
हर जन हर मन मुस्काने लगे देख बारिश की कुछ बूंदों को ।।
वृक्षों पर पत्ते हरियाली फैलाने लगे देख बारिश की बूंदों को ।
कवि गीत गुनगुनाने लगे फिर देख बारिश की नन्ही मुन्नी बूंदों को ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
8192078541
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कविता