सादगी का शहर,अजनबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
भीड़ बढ़ती रही,राह चलती रही ।
ढूंढ़ती आसरा ,गल प्रबलती रही ।।
मैं खड़ा उस जगह,मतलबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
शब्द फूटे मिले,लाभ झून्ठे मिले ।
स्वप्न के दर्मियां ,आप रून्ठे मिले ।।
हौंसलों का शिखर ,कागजी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
मोह ममता ममीं,धुल गयी वह जमीं ।
मौन दिल बैठता,जम गईँ सब कमीं ।।
रीतियों का चलन ,लाजिमी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
रास्ते क्या?बुनें,वास्ते क्या?चुनें ।
नापते वादियाँ ,कांपते क्या?सुनें ।।
दोस्तों में "अनुज ",दिल्लगी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ,उत्तर प्रदेश ।
2 गीत --राग में खो गई रागिनी आपकी
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राग में खो गई ,रागिनी आपकी ।
मान ली जान ली,दामिनी आपकी ।।
पास आती दिखी ,आज गाती दिखी ।
आशिकी भी भली ,आजमाती दिखी ।।
चांद पाया सजी , चाँदनी आपकी ।
राग में खो गई,रागिनी आपकी ।।
राह मोड़े दिखे,भाव थोड़े दिखे ।
शाम को जाम के,पाँव ओढ़े दिखे ।।
कांपती भांपती ,बानगी आपकी ।
राग में खो गई, रागिनी आपकी ।।
ज्ञान की रीति सी,शान संगीत सी ।
ताल ही ना मिली,हार भी जीत सी ।।
ख्वाब बीता बुनूँ ,जिन्दगी आपकी ।
राग में खो गई , रागिनी आपकी ।।
भूल को भूलती ,बेरुखी आपकी ।
पास आके पढ़ी,बेबसी आपकी ।।
रात सी भा गई ,रोशनी आपकी ।
राग में खो गयी ,रागिनी आपकी ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
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कविता