बलात्कार

 बलात्कार 
  
बलात्कार का नाम सुनते ही जैसे रूह सी कांपने लगती है ।
एक जिन्दगी दूसरी जिन्दगी को जैसे उजाड़ने सी लगती है ।।
लाखों निर्भया नर पिशाचों की हवस की बलि चढ़ जाती हैं ।
मांस भक्षी जानवरों को जैसे हवस की भूख बढ़ जाती है ।।
होता है बलात्कार जनता का तो जनता कराह नहीं पातीं है ।
इन नेताओं की करनी का फल आखिर जनता ही उठाती है ।।
कुछ कली फूल बनने से पहले ही काल के गाल में समा जाती हैं ।
खुशगवार जिन्दगी भी जलकर फिर राख में बदल जाती है ।।
कालिख चेहरे की तो जिन्दगी भर रह-रहकर तड़पाती रहतीं हैं ।
उस अबला से पूछो जरा जो नर पिशाचों की बलि चढ़ जाती हैं ।।
मां बहन बेटी पत्नी और अन्य रिश्ते हर घर परिवार में होते हैं ।
फिर कैसे बलात्कार के चक्रव्यूह पल-पल जीवन में खड़े होते हैं ।।
ये कैसी दुश्मनी जो बहन बेटियों की इज्ज़त से खेला करतीं हैं ।
भारत की संस्कृति तो हमेशा नारी को मातृ रुप में पूजा करतीं हैं।।
नव रात्रि में घर घर में नारी पूजा और मां का जागरण होता है ।
उसी मातृ रुप के संग इन नर पिशाचों का आवरण होता है ।।
हर बहन बेटी को सबल बनायें जो जीवन में रणंचंडी बन जाये ।
जो असुर आंख उठाये उनपर महाकाली बनकर कहर बरफाये ।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश 

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