संस्कार

संस्कार 
जीवन के हर मोड़ पर इस दुनिया में कैसे कैसे मोड़ आते हैं ।
संघर्षों के कठिन दौर में अक्सर अपने भी साथ छोड़ जाते हैं ।।
काले घने बादलों में जैसे पानी का बड़ा भंडार छुपा रहता है ।
संस्कार जिसकी जीवन कुंजी उसमें जीवन सार छुपा रहता है ।
कृष्ण के पास जाते समय सुदामा हिचकिचाते हैं । उन्हें पुरानी बातें याद आने लगती हैं । कैसे घने जंगलों में दोस्त के साथ उन्होंने दगा की थी ।सारे चने अकेले ही चबा गये थे । पिता व गुरु के दिये गये संस्कार भूल गये थे ।
पत्नी समझाती है वह बचपन की बात थी ‌ कृष्ण राजा बन चुके हैं और तुम्हारे पुराने सखा भी है ।
वह चाहकर भी तुम्हारी सहायता के लिए भूलकर भी मना नहीं कर सकते । मैंने कृष्ण को कभी देखा भी नहीं फिर भी मैं उन्हें तुमसे ज्यादा जानती हूं ।
सुदामा हंसकर कहने लगे मैं कृष्ण को भली-भांति जानता हूं महा ठग है मीठी-मीठी बातों से सबको फुसला लेता है । कहीं तुम भी उसकी चालों में न आ जाना ।
पत्नी मुस्करा कर कहने लगी मुझे मत चिढाओ कृष्ण हर मन हर दिल में अपनी जगह बना कर रखता है । यदि विस्वास न हो तो खुद का ही दिल टटोलकर देखो ।
सुदामा हंसकर कहने लगे लग रहा है कृष्ण का जादू तुझपर भी चल गया है ऐसा लगता है ।
ठीक है बाबा मैं कृष्ण के पास जाता है लेकिन राजा के पास ले जाने के लिए भी तो कुछ चाहिए । पत्नी सोच में पड़ गई क्या दे थोड़े से सटटी के चावल रखे थे पत्नी ने उन्हें ही पोटली में बांध दिया ।
सुदामा चल पड़े कृष्ण से मिलने फटी हुई धोती मैला सा कुर्ता ‌। कोई उनसे पूछता किससे मिलने जा रहे हो सुदामा बड़ी शान से कहते द्वारिका धीश कृष्ण से मिलने जा रहा हूं ।लोग हंसकर निकल जाते । कहां राजा भोज कहां गंगू तेली ।
चलते चलते द्वार पर पहुंच गए द्वार पाल से कहते हैं ज़रा कृष्णा से मिलवा देना भैया ।
द्वार पाल आश्चर्य जनक मुद्रा में सुदामा को देखता है और कहता है चले आते हैं कहां कहां से राजा से मिलने वह नाक भौं सिकोड़ने लगता है ।
लेकिन राजा की आज्ञा कि कोई भी यदि मुझसे मिलने के लिए आये तो उसे मना न किया जाए । मजबूर होकर वह उच्चाधिकारियों को अवगत कराता है । अधिकारियों के पूछने पर सुदामा अपनी कृष्ण से मित्रता के बारे में बताते हैं । अधिकारी अर्धविक्षिप्त समझकर उसे जाने के लिए कहते हैं लेकिन सुदामा वहीं बैठ जाते हैं ।
थक-हारकर द्वारपाल कृष्ण को सुदामा के आने की सूचना देते हैं । कृष्ण जैसे ही सुदामा का नाम सुनते है भौंचक से रह जाते हैं । और दौड़कर द्वार तक चले आते हैं । और उन्हें बड़े प्रेम से अपने साथ पालकी में बैठाकर चलते हैं और खुद पैदल । देखने वालों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता ।एक राजा एक भिखारी को इतने आदर सम्मान के साथ अपने शयनकक्ष तक लेकर जा रहा है । जरुर इसमें कोई बात तो है यह सही कह रहा था ।चलो अच्छा हुआ हमसे इसके साथ कोई बदतमीजी नहीं हुई वरना लेने के देने पड़ जाते ।
इन राजाओं के किन किन से रिश्ते निकल आयें ईश्वर ही जानता है ।
कृष्ण अपने शयनकक्ष में ले जाकर पहले तो उनके पैर धोते हैं पैर धोते समय सुदामा की दीन हीन दशा देखकर कृष्ण की अंश्रुधारा फूट पड़ती है और टप-टप आंसू टपकने लगते हैं ।
सुदामा के पूर्व जन्म के शुभ संस्कार उदय होने लगते हैं ।
पैर धोने के बाद कृष्ण उनके वस्त्र बदलवाते है । और उन्हें नाश्ता पानी आदि कराते हैं ।
उसके बाद कुशलक्षेम शुरू होता है और दोनों पुरानी यादों में खो जाते हैं ।
अचानक कृष्ण पूछने लगे यार यह तो बताओ भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है हमें भी तो उसका स्वाद चखाओ । सुदामा दायें बायें झांकने लगे । क्या बताएं लेकिन त्रिलोक के स्वामी से कोई बात छुपी थोड़े ही रह सकती है । कृष्ण ने धीरे से पोटली खोल ली कहने लगे चुपचाप खाने की आदत लगता है अभी तक छूटी नहीं ।जो अभी तक छुपाए फिर रहे हो और निकाल कर सूखे चावल खाने लगे ।
प्रेम जाल में संसार का देखो कैसा है व्यवहार ।
दो मुट्ठी चावल में छीन लिया सकल कुसंस्कार ।।
कृष्ण की लीला कृष्ण ही जानें हम तो मानव बुद्ध ।
जीवन के इस दौर में भला अब कौन रहा है शुद्ध ।।
दो मुट्ठी चावल खाते ही तीसरी मुट्ठी पर पकड़े हाथ ।
सब कुछ मित्र के दे दिया तो हम हो जायेंगे फिर अनाथ ।।
जो दीना नाथ है  क्या उनके पास प्रेम धन का छोर ‌।
मानव हित जीवन जिनका उन्हें नहीं किसी की होर ।।
कुछ दिन सुदामा को कृष्ण प्रेम पूर्वक ठहराते हैं जब सुदामा को पत्नी बच्चों की याद आने लगती है तो सुदामा घर जाने की जिद करने लगते हैं । काफी मना करने पर भी सुदामा घर को चलने लगते हैं । लेकिन उनके संस्कार ऐसे हैं चाहकर भी कृष्ण से कुछ मांग ही नहीं पाते । और कृष्ण के संस्कार ऐसे हैं वह बिना कहें ही सब कुछ दे देते हैं ।
अजीब स्थिति है प्रेम की जिसका कोई मोल ही नहीं है । मांगने वाला भी चुप्पी साधे हुए हैं और देने वाला भी चुप्पी साधे हुए हैं । दोनों ही दोनों से मन का भोग छिपाये बैठे हैं ।
सुदामा को कृष्ण हंसी-खुशी के साथ विदा करते हैं लेकिन प्रत्यक्ष में देते कुछ नहीं । सुदामा भी हंसी खुशी के साथ विदा होते हैं लेकिन मन में ढेर सारे सवाल छुपे हुए हैं ।घर जाकर पत्नी बच्चों को ज़बाब क्या दूंगा ।वह तो रोज ही जली कटी वैसे ही सुनाती रहती है । जब खाली हाथ जाऊंगा तो शायद घर में घुसने ही नहीं देगी ।
मैं तो पहले ही कह रहा था कृष्ण जैसा महा ठग इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है ।
मीठे मीठे बोल से ही पत्थर को भी मोम की तरह पिघला देता है । मैं मूरख मति का मारा आखिर क्यों कृष्ण से सहायता मांगने गया । देखो कैसे टरका दिया कुछ तो बच्चों की खातिर दे ही देता ।
धीरे धीरे इन्हीं बातों में कब घर आ गया उन्हें पता ही नहीं चला ।
लेकिन जैसे ही घर पहुंचते हैं उन्हें अपना टूटा-फूटा घर दिखाई नहीं पड़ता ।
चारों तरफ़ एक सुन्दर महल का निर्माण हो चुका है ।ऊपर झरोखे से पत्नी सुदामा को देख लेती है और बच्चों से कहती हैं अपने पिता को लेकर आओ ।
बच्चे पिता के पास पहुंचते हैं तो सुदामा बच्चों तक को नहीं पहचान पाते । कहते हैं बेटा यहां कहीं हमारा घर हुआ करता था वह दिखलाई नहीं पड़ रहा । बेटा क्या आप मुझे मेरे घर पहुंचा सकते हो ।
बच्चे भी आश्चर्य चकित होकर पिता की मनोदशा को देखने लगते हैं और कहते हैं पिता जी आपके कहने से ही इस घर का निर्माण हुआ है । मैं आपका पुत्र हूं कृष्णा चाचा हमारे घर आये थे उन्होंने ही अपने सामने इस घर का निर्माण करवाया है । हमने उनसे पूछा कि पिताजी नहीं आये तो कहने लगे तुम्हारे पिता जी ने मुझे भेजकर कहा है कि मैं कुछ समय तुम्हारे महल में रहूंगा और तुम मेरे घर को बनवाओ ।
सुदामा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जो कृष्ण हर पल मेरे साथ रहा कब वह यहां आया और इतने कम समय में इतनी ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं का निर्माण भी करवा दिया ।
जैसे तैसे बच्चे पिता को अन्दर लेकर जाते हैं । सुदामा पत्नी को बदचलन समझने लगते है । लेकिन पत्नी अपने पति वृत धर्म के बारे में समझाते हुए कहती हैं कि मैंने स्वपन में भी कभी परपुरुष का दर्शन नहीं किया । जैसा आपका आदेश था वैसा ही हुआ । कृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से आपको कुछ भी न देकर बहुत कुछ दे दिया ।शायद आप लेने में आनाकानी करते इस लिए कृष्ण ने हमारे पास गाडियां भरकर धन का भंडार भेज दिया ।
भले ही दुनिया कृष्ण को कुछ भी कहती फिरे कृष्ण तन से राजा ही नहीं मन से भी राजा है ।वह बिना मांगे ही सब कुछ दे देता है ।
यही है उसके संस्कार जो उसे सबसे अलग खड़ा करते हैं ।लोग पैसे पैसे पर मर मिटते हैं लेकिन कृष्ण जब देता है तो लेने वाले को भी पता नहीं चलता उसे क्या क्या मिल गया ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय
ग्राम महमदी
पोस्ट कौराला मंडी धनौरा
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
244231
मोबाइल न 8192078541
कृपया आपको यह कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें । आपका मार्गदर्शन ही हमें उत्कृष्ट सृजन के लिए प्रोत्साहित करता है ।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
आपका अपना चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश 

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form