कैकेयी की पीर

कैकेयी की पीर
केकय देश की थी राजकुमारी महान ,
थी रणबाँकुरी था अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान ,
केकय में देखा राक्षस सुमाली का कोप ,
शपथ कर ठानी रार अंकुर शत्रुता का रोप ।

अवधपुरी की रानी कैकेई महा ज्ञानी ,
मंत्री थी मंथरा गुप्तचर तंत्र को जानी ,
मंथरा करि मंत्रणा माँ शारदा संग, बताय ,
शारदा करि काल गणना, मंथरा आय जताय ।

दशरथ जब मंत्रणा करि राज राम को दीन्हा ,
समाचार ने कैकेई को विचलित कर दीन्हा ,
कौन देव जाय राक्षस कुल का पतन कीन्हा ,
कौन जाय विकट भट निशाचर का गर्व हीन्हा ।

कर तप राक्षस कुल निर्भय हुआ पाय वरदान ,
अनीति, अधर्म,  संत  संहारक  थी  पहचान ,  
कोई भूपति नहीं समर्थ रावण पर जय पाय ,
भूपति यक्ष देव इंद्र रण छोड़ कर भाग जाय ।

केही विधि राम हत कर, बनें धरा तारक ,
राम बन वनवासी, बनें रावण कुल नाशक ,
केही विधि राम की  रावण साथ रार ठने , 
केही विधि वरदानी मेघनाद काल ग्रास बने ।

जो तपसी चौदह बरस पलक नही मिलावे ,
वो रणबाँकुरा खल मेघनाद हत कर पावे ।

बन दीपक  कैकेई   अपजस गले लगाया ,
भरत बनें राजा? राम वनवासी बनाया ?
धरा हित चिंतक कैकेई की पीर घनेरी ,
रणनीतिज्ञ थी कैकेई, काल कलंक ना घेरी ।

मंथरा मंत्र से था ज्ञान, राम धरा सुख धाम ,
रावण से  होगा बैर,  कारण  होगा  काम ।

राम वनगमन करें! जनक सुता रहवे साथ ,
अनुज लखन भी कांधा मिलाकर जावे साथ ,
चौदह बरस तक तप कर नींद पर जय पाये ,
मेघनाद वरदानी  को  वो  ही  हत  कर पाये ।

एक साध पूरण होय कारज सब बन जाये ,
मांग दो वर  रणनीतिक पाश देय बिछाये , 
राम पावे नव अस्त्र-शस्त्र, ऋषि से वन जाय ,
कारण बने सीता,  रावण से रार ठन जाय । 

मंथरा संग कैकेई , चौसर खेल बिछाया ,
धन्य भाग्य कैकेई  ने, अपजस गले लगाया ,
निज हित त्याग अमर हुई कैकेई धरा धाम ,
राम वनवास हुआ रहा संग कैकेई का नाम ।

बन दीपस्तंभ जग पापियों से मुक्त कराया ,
वानर संग राम ने धर्म ध्वजा को फहराया ।

अपजस चुन कैकेई ने अपना सुहाग मिटाया ,
देश काल धर्म राह पर कलंक का टीका लगाया ।।

 अजय अग्रवाल"पप्पी" ..स्वरचित.मौलिक .. ग्वालियर मध्यप्रदेश

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