सुबह जैसे ही उमा ने T.V.पर न्यूज़ चैनल लगाया।
कोरोना और लॉक डाउन की ही ख़बर आ रही थी।
शहर में सब कुछ बंद हो गया था । वह चाय का प्याला लेकर ,अपने पति के पास गई ही थी ..
तभीफोन की घंटी बजने लगी। बेटी का फोन था वह घर आने को कह रही थी। उसको समझ नहीं आ रहा था ।
उसनेअपनी बेटी को कानपुर में ही रूकने के लिए कहा।ताकि वह सुरक्षित रहे।यातायात के साधन सब बंद हो गए थे।
उमाअपने ही विचारों की कशमकश मैं उलझ रही थी, कि तभी उसकी नज़र सामने झुग्गी डाल कर रहने वाले परिवार पर जा अटकी।
उस परिवार में दोनों मियाँ बीवी दिहाडी मजदूर हैं। उनके दो बेटी और एक बेटा है।
आज लॉक डाउन हुए एक सप्ताह हो रहा था।पूरा परिवार पेट भरने की कबायत में इस कोरोना की जंग मैं पिस रहा है।
उनके बच्चों के उतरे चेहरे और आँखों से बहते आँसुओं ने उसको झकझोर दिया।
*ये कैसी गरीबी या लाचारी है उन माता पिता की*....
जो अपने बच्चों के लिए दो वक्त का खाना भी नहीं जुटा पा रहे।
उसने खाने का डिब्बा पैक किया और उनके घर की ओर लम्बे -लम्बे कदम से चल दी।जैसे ही उसने खाना उनकी ओर बढ़ाया वे एकदम से खाने पर टूट पड़े।उसकी आँखें गीली हो रही थी।
उसने पूछा, भूख लगी है।
मजदूर ने हाथ जोड़ते हुए कातर स्वर मैं कहा-हाँ .. बच्चे चार दिन से भूखे हैं।
"मैं गरीब काम करूंगा
तभी इनको खाना खिला पाऊंगा"।
वह बोली भैया ,बच्चों को और स्वयं को कोरोना से बचाओ ,मास्क लगाओ, हाथों को स्वच्छ रखो।
वह बोला मैडम जी, कोरोना से तो पता नहीं हम बचेंगे या मरेंगे!
पर भुखमरी जरूर हम सबकी जान ले लेगी।
अभी एक महीना मुझे कोई काम नहीं देगा।
उसकी सिसकियाँ बँध आईं--मेरे बच्चों का क्या होगा!
मैं अकेला नहीं हूँ.. और भी बहुत लोग हैं। जो यहाँ फँस गए है,सब अपने गाँव जाना चाहते हैं।
तभी घड़ी पर उसका ध्यान गया 2बज रहे थे ।
उसने घर लौट कर महिला मंडल की आपात बैठक बुलाई।जिसमें सर्वसम्मति से मजदूरों को खाना पानी उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया जा रहा था ।
सविता गुप्ता
प्रयागराज✍️
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