न जाने क्यों,
मिथ्या आडंबर का,
लेते हैं लोग सहारा,
अपनी श्रेष्ठता साबित करने,
फिरते हैं मारा मारा !
करते हैं अजीब अजीब हरकतें,
भद्दा मज़ाक जिन्हें है प्यारा!
जनता के बीच जाकर,
झूठे झूठे किस्से सुनाकर,
बन जाते हैं बेचारा!
जन सेवक का पहनकर मुखौटा,
होते हैं बेपेंदी का लोटा,
आज इस दल, कल उस दल,
बन जाता है फिर दलदल,
जिससे नहीं पाते हैं निकल,
करके जतन भी सारा!
खुलता फिर पापों का पिटारा!!
जनता के वोटों से जीते,
सत्ता पाकर मलाई खाते, मधु पीते,
करते हैं सबका वारा न्यारा!
मसखरे नेता की जगह है खाली,
चुनावी सभा में ठोको ताली!
#पद्म मुख पंडा
ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़, छ ग
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कविता