सिर्फ आजादी बातों से नहीं
अपने कर्मों से हमने पाई है !
जब जब इस धरती मां के किसी
लाडले ने सीने पर गोली खाई है!
तब तब इस आजादी की कीमत
हमने अपने लहू से चुकाई है ।।
करते हैं मातृभूमि पर अपना
सब कुछ न्यौछावर हम सब
हमारी मातृभूमि सर्वस्व है हमारा
इसकी रक्षा की खातिर हमारे
सरहद पर तैनात खड़े हर भाई ने
कई सालों तक राखी नहीं मनाई है।।
इस मिट्टी में बसा है प्रेम भाव,
आदर सम्मान सभी का है लेकिन
जिस जिस ने इस मातृभूमि पर
अपनी काली नज़र उठाई है!
इतिहास उठाकर देख लो तुम
उसने अपनी गर्दन धड़ से कटवाई है।।
तोड़ गुलामी की जंजीरें भारत ने
अपनी गरिमा विश्व में बढ़ाई है ।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर
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कविता