विधा: नज़्म
जिस्मोंजान से नहीं
अपनी रूह से लिखते है,
क्या कमाल का इख्तियार
उनकी एक शाहकार
उल्फत है मगर अपनी तहरीर से
जज़्बा और चाहत भी भरपूर
निकला है बड़ा बेमिसाल कलमकार
उनकी एक शाहकार
मुसर्रत हो चाहे हो कोई रंज
बह जाते है दरिया आंखो से
फिर नही मुरझाता है यह बहार
उनकी एक शाहकार
मिस्किन हो कोई उधर तो
लिखते वे सदा हकीकत बाते
है उनका लिखने में ही खुमार
उनकी एक शाहकार
मानव डे (असम)
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कविता