स्वर्णिम ज्योति संघ आई है;
आजादी की दिवाली।।
निज के खातिर गहराई है
निज के लिए किनारे,
दिन के उजियारो में खोए
उजले चाँद-सितारे,
प्राण फूँक देती मुर्दों में;
कविता हिम्मत वाली।।
स्वर्णिम ज्योति संघ आई है;
आजादी की दिवाली।।
अनुपम मेरी परंपरा
अनुपम गंगा,जमुनी तहजीब,
हम से सीखों अदावते
आैर हाथ मिलाने की तरकीब,
सत्य अहिंसा से सज्जित;
पाती-पाती,डाली-डाली।।
स्वर्णिम ज्योति संघ आई है;
आजादी की दिवाली।।
हम पांव पखारे मेहमानों के
फूलों को बिन-बिन,
और कौन सा होगा कहीए
इससे अच्छा शुभ दिन,
बहुत हो चुका फैल चुकी अब;
रात अंधेरी काली।।
स्वर्णिम ज्योति संघ आई है;
आजादी की दिवाली।।
सुधांशु पांडे"निराला"
उत्तर प्रदेश,प्रयागराज.
संपर्क सूत्र:-9555469742
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कविता