(रविवार विशेष)
हे प्रभु दिनकर दानी, सूर्य भगवान हमारे,
तुमको हम सुबह सुबह नमस्कार करते हैं।
तुम ही जगाते हो नींद से सारी दुनिया को,
तेरी सुनहरी किरणों से हम श्रृंगार करते हैं।
हे प्रभु दिनकर दानी………..
तुम अस्ताचल को जाते, हम भी सो जाते,
हम भक्त तेरे तुमको बहुत प्यार करते हैं।
तुमसे रहा हमारा, प्रभु आदिकाल से नाता,
तेरे सहारे सभी जीवन नैया पार करते हैं।
हे प्रभु दिनकर दानी…………….
तुम जब क्षितिज पर आते अंधेरा भगाते,
तेरी कृपा को हम सभी स्वीकार करते हैं।
तेरी किरणों में ही जीवन ज्योति दिखती,
तेरे आशीर्वाद से जग में विहार करते हैं।
हे प्रभु दिनकर दानी…………..
अपने ताप से जला डालो इस कोरोना को,
हृदय पूर्वक तेरी विनती, बारंबार करते हैं।
स्वर्णरथ तेरा बड़ा प्यारा लगता है हमको,
मिटा दो, जो उजाले को अंधकार करते हैं।
हे प्रभु दिनकर दानी……………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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कविता