आसमान का सितारा टूटा अनन्त गहराई में खो गया ।
स्वर सृजन का वो स्वर जिसे सुन जन-जन भी रो गया ।।
स्वर्ग के द्वार पर दुंदुभी बज रही होगी लता के आने से ।
जन जन में अब शोक हुआ स्वर कोकिला के जाने से ।।
अमर हुआ वो गीत जरा आंख में भर लो पानी ।
स्वर साधना के लिए जिस मनीषी ने लगा दी सारी जवानी ।।
आसमान के सितारे भी रोते होंगे उस स्वर कोकिला के लिए ।
सरस्वती का वरदहस्त लिए थी जो स्वर साधना के लिए ।।
फिर न मिले कोई सितारा ऐसा जो स्वर का कमाल दिखाए ।
ऐसा लगता है कहीं वो स्वर साधिका फिर से लौट आये ।।
जीवन जिसका सीधा साधा जो जीवन के गीत सुनाती थी ।
स्वरों की सरताज बन जन मन में स्वर साम्राज्ञी कहलाती थी ।।
लता मंगेशकर एक नाम जो जन में स्वरों का दीप जलाता था ।
आज लगता है कुछ ऐसा आकाश भी कुछ खाली सा हो जाता है ।।
शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि उस मनीषि के लिए ।
हर बच्चे में पैदा हो लता फिर से स्वरों की साधना के लिए ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता