रथ यात्रा पावन पुरी , रथ मोहक रँग गात ।
साथ बहिन के चल रहे , बलभद्र संग श्री नाथ ।।
जो जन यात्रा से जुड़े , मिले यज्ञ -शत पुण्य ।
मोक्ष राह खुद ही खुले , जन्म सफल हो धन्य ।।
राही आया राह हरि , समझ गये रँगनाथ।
साथ बहिन के चल रहे ,बलभद्र संग श्री नाथ ।।
चढ़े गरुणध्वज नाथ जब , रोम रोम में श्याम ।
लाल - पीत रँग वस्त्र भी , मन को दें आराम ।।
शीतल जल पावन पवन , नाथ करोडों हाथ ।
साथ बहिन के चल रहे , बल्भद्र सन्ग श्री नाथ ।।
रथ में घोड़े चार भी , धवल रंग मुस्कात ।
सोलह पहियों से जड़ित , अनुपम विरल सुहात ।।
सिखा रहे सँग-सँग रहो , भ्रात बहिन विश्वाश ।
साथ बहिन के चल रहे , बल्भद्र संग श्री नाथ ।।
नगर भ्रमण निकले हरी , जन-जन- मन हरसाय ।
उत्सव विकट विशालतम , भव्य ध्वजा लहराय ।।
"अनुज" राग सृष्टि बहिन , माया योग सनाथ ।
साथ बहिन के चल रहे , बल्भद्र संग श्री नाथ ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
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कविता