लेखनी तू आबाद रह


         लेखनी तू आबाद रह
      
जन-मानस ज्योतित कर सर्वदा,
        हरि भक्ति प्रसाद रह।
        लेखनी तू आबाद रह। 

   पर   पीडा़  को  टार  सदा, 
   शुभ  सदगुण सम्हार सदा। 
   ज्ञानालोक लिए उर अन्दर, 
    कर अन्तः उजियार  सदा। 

बद विकर्म ढो़ग जाल फरेब का, 
     कभी नहीं फरियाद रह।
     लेखनी  तू आबाद  रह। 

  शुभ  सदगुण सत्कर्म  सिखा, 
  सत्य   धर्म  की  राह   दिखा।
  जीव जगका भला हो जिसमें 
   पद  अनूठा  अनुपम  लिखा। 

सुख सागर सुचि नागर बनकर
     युगों-युगों तक याद रह।
     लेखनी  तू  आबाद रह। 

   अजेय  सदा  अनमोल  है तू, 
   मृदुमय   मिठी  बोल   है  तू। 
   पोष्पलिला पाखंडका सर्वदा, 
   खोलने   वाली   पोल  है  तू। 

बिक कदापि ना कभी कहीं पर,
     सदा अभय आजाद रह। 
     लेखनी  तू आबाद   रह। 

   सबको   पावन  पाठ  पढा़, 
   सुख  शान्ति सदभाव बढा़। 
   सर्वोतम  सर्वोच्च   तूही  है, 
   कभी  परस्पर  नहीं   लडा़। 

मानव धर्म का "बाबूराम कवि"
  सुखमय सरस सु-नाद रह  
  लेखनी    तू  आबाद   रह। 

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✍️बाबूराम सिंह कवि 
    बडका खुटहां विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार) पिन-841508
     मो0 नं0-9572105032
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