पलायन

कविता:- पलायन
रचनाकार © अमन कुमार होली "पवित्र"
पाश्चात्यीकरण की जड़ें बड़ी
गहरी है हमारे देश भारत में।

स्वदेशी की धधक थी,
जो गांधी के उस भारत में।

बुझा है मसाल ए स्वदेशी
क्यों आधुनिक भारत में?

चलो उठो ऐ देश भक्तों,
सभ्यता, संस्कार तुम बचा लो।

भारत की विरासत गाथा,
जरा तुम भी थोड़ा गा लो।

मत पहचान तुम भारत मां की
इस दुनिया के पटल से मिटाना।

यदि बची है अब भी तुम में देशभक्ति
गैरों की माटी में हिंदुस्तानी परिधान तुम अपनाना।

यदि अनुराग हो रक्त में तुम्हारी,
प्रीत मां की भूल ना तुम जाना ।

अपनी आने वाली पीढ़ियों को,
पुण्य धरा देशभक्तों की गौरव गाथा
सुनाना ‌।

पलायन कर जाते हैं मातृभूमि छोड़कर,
विदेशी सरजमीं पर यूं देश के युवा

क्यों भूल जाते हैं ? कर्तव्य उनका अभी शेष है,
कर्ज उतारना है, करनी है मातृभूमि की सेवा ।

अन्न, जल ग्रहण किया सांसें ली जिस वायु में,
विदेश चले गए पुत्र मां-बाप को छोड़ अधेड़ आयु में।

गोद में खेले बचपन बीती जिसकी धूल में,
अपमान किया जन्मभूमि का जाने अनजाने भूल में।

कैसे नाता तुम तोड़ चले?
जनम-जनम का साथ छोड़ चले।

विदेशी भाषा, परिधान तो अपना लिया,
पर भारत माता के संस्कारों को तूने क्यों भुला दिया?

रचनाकार © अमन कुमार हो‌ली "पवित्र"
जिला साहिबगंज, संथाल परगना
झारखंड (८१६१०९)

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