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आज कैसी पत्रकारिता देश में नज़र आ रही है
एक ही खबर चौबीसों घंटो दिखाई जा रही है
आज माइक और कैमरों में होड़ मची हुई है
रिया कब क्या खा रही, रिया कहाँ जा रही है
पत्रकार गाड़ियों के पीछे-पीछे दौड़ सी लगाते हैं
सबसे पहले रिया की गाड़ी टीवी दिखाई बताते हैं
कोर्ट से ज्यादा मिडिया ट्रायल हैं आज चलते
शायद न्यायालय भी यह देख शर्म कर जातें हैं
सकारात्मक समाचार तो टीवी से विदा हो गये
बेफजूल की बहस कर ही प्रवक्ता मशहूर हो गये
आम जनता के मुद्दे अब कहाँ, किसे नजर आते हैं
टीवी पर एजेंडा चला कर शाहीन बाग हो गये
कुछ वाहियात बोलने वालों को टीवी पर बुलाते हैं
वे जाति धर्म का जहर बातों से घोल चले जाते हैं
टीवी की बहस का स्तर निम्नतम होता जा रहा
प्रवक्ताओं की ही उलटी-सीधी में उलझ जाते हैं
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डाॅ सतीश चंदाना
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है)
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