बदल गया सब ढँग कबूतर तार नही लाते,,
कागज में बटोर के तड़पता प्यार नही लाते,,
निगाहें ढूँढती फिरती थी जिसे गली-कूचे,,
अब ढूँढकर वो सच्चा दिलदार नही लाते,,
इंसाँ के बदलने का असर हुआ परिदों पर,,
मुंडेरों पर पग फेरा कभी-कभार नही लाते,,
ख़ुद हो जाती है लड़की रुख़सत घरौंदे से,,
उसे लें जाने के लिए अब कहार नही लाते,,
नाम भर की रह गयी रँगे वफ़ा जमाने में,,
भर के आँचल में कोई त्यौहार नही लाते,,
© सचिन गोयल
सोनीपत हरियाणा
Ig,, burning_tears_797
Tags:
कविता