सुकून दो पल का आधार अस्तित्व।।

छोटा सा बीज पता नहीं खुद का अस्तित्व थकी हारी दुनियां के सुकून दो पल का आधार अस्तित्व।।

लाख तुफानो सेलड़ता नहीं झुकता अपनी धुन में खड़ा रहता अपने साये में हर पथिक की प्रेरणा बरगद की छाया।।

बरगद का विशाल बृक्ष
जितना विशाल उतना ही छोटा बीज मिटटी में मिल जाता
अपने अस्तिव को मिटटी में 
मिला देता नए कलेवर में छोटा
सा वो बीज दुनियां की आशा 
विश्वाश की धरोहर का धन्य
विशाल बट कहलाता।।

धीरे धीरे बढ़ाता जाता मौसम की
मार थपेड़ो से अपने अरमान
अस्तित्व के लिये झुझता कभी
कोई आतताई बचपन में ही उसके
अस्तित्व को रौंदने की कोशिश करता ।।                             

नन्हा सा बरगद का बृक्ष
घायल होता आहें नहीं भरता बिना प्रतिशोध की भावना के अपने शेष अस्तित्व को दामन में
समेट नई ऊर्जा उम्मीद से बढ़ाता
जाता।।

मन में ना कोई मलाल जहाँ की
खुशहाली का मांगता ईश्वर
से आशिर्बाद वसंत पतझड़ से
भी नहीं कोई सरोकार पुराने
पत्ते भी छोड़ देते साथ मगर
नए किसलय कोमल अपनी
शाख के पत्तो का रखवाला
निभाता साथ।।

कोई काट शाक अपने घर
का चूल्हा जलाता पत्ते शाक
भी ज़माने की जरूरतों पे कुर्बान।।

पूजा भी खुद की देखता कभी
कभार कुल्हाड़ी आरी की झेलता
मार उफ़ नहीं करता प्राणी मात्र कीजरुरत के लिये खुद का का करता त्यागबलिदान ।।          

प्राणी युग के दिये घाव के साथ अनवरत जीत जाता छोटे से बीज का बैभव विराट अस्तित्व निस्वार्थ परमार्थ ।।

परम् श्रद्धा में निश्चल निर्विकार
अडिग अविराम सदियों युगों
का गवाह खड़ा रहता वारिश में भीगता अपने साये में आये हर प्राणी को अपनी छतरी देता।।

पसीने से लथपथ
जीवन के अग्नि पथ का मुसाफिर
प्राणी आग के शोलो की तपिस में
तपता विशाल बरगद के
बृक्ष के नीचे पल दो पल में ही मधुर झोंको के शीतल बयार की
छाँव में नए उत्साह की राह की
चाह ।।

जीवन ही साधना परोपकार
आराधना छोटे से बीज से
बरगद की विशालता सहनशीलता
धैर्य दुनियां के लिये सिख ।।    


मगर दुनियां सिखती कहाँ सिर्फ स्वार्थ के संधान के बाण तीर कमान से स्वयं के मकसद का करती रहती आखेट ।।
                                           

छोटे से बीच का विशाल अस्तित्व
शाक पत्ते जड़ ताना अतस्तिव के
अवसान के बाद भी युग प्राणी मात्र के कल्याण में समर्पित।।

ब्रह्मांड के प्राणी स्वार्थ में एक
दूजे का ही खून पीते मांस खाते
बोटी बोटी नोचते हड्डिया चबाते
द्वेष ,दम्भ ,छल ,छद्म सारा प्रपंच
जुगत जुगाड़ लगाते एक दूजे के
अस्तित्व को ही खाते।।


बरगद का बृक्ष छोटे से बीज के
अस्तित्व की विशालता से कुछ 
नहीं सिखते बरगद का बृक्ष निर्लिप्त भाव से पल पल जंजाल 
झंझावात से लड़ता रहता दुनियां
को एक टक देखता रहता।।

अपनी साक से नए साक पैदा
करता परमार्थ में नित्य निरंतर
जीत जाता वर्षो के इतिहास का
गवाह का अपना अंदाज़ छोटे से 
बीज की विशालता बरगद की
छाँव।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form