कहते हैं सुख और दुख मानव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है ।एक आता है तो दूसरा जाता है। दूसरा आता है तो पहला जाता है ।पर कभी-कभी यह देखा गया है यही सुख-दुख हमारे लिए उत्सव भी बनता है और दुख का कारण भी। जब कभी सुख आता है तो अपने साथ दुख लाता है। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, सुख दुख का चोली दामन का साथ है सुख में दुख और दुख में सुख भी होता है।
अपने किसी के बिछड़ने का दुख, किसी नए साथी के मिलने का सुख ।परिवार में जब एक बहु जब आती है तो बहुत सारी खुशियां एक साथ लेकर आती है और परिवार का एक बुजुर्ग जब सभी को छोड़कर मृत्यु का वरण करता है ।तो परिजनों के लिए उस दुख संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। जब- जब मनुष्य ज्यादा से ज्यादा सुख की चाहत करने लगता है। उसके नजदीक दुख आता_ जाता है। पूरे दिन बिस्तर पर रहना। खाना_ पीना ,सोते रहने में सुख जरूर दिखाई पड़ता है ।पर यहीं से शरीर को तरह-तरह की बीमारियां होने लगती है। और व्यक्ति दुखी होने लगता है ।हम जो सुख गढ़ते हैं ।उसी में दुख होता है।
छोटे से छोटे दुख को हम बड़ा से बड़ा दुख बताने में दिन रात लगे रहते हैं। घर के एक प्राणी को छोटी सी तकलीफ हो गई चोट लग गई ।उस बात का बयान बाजी अपने पूरे परिवार में इस तरह लोग करेंगे जैसे बहुत बड़ी बात हो गई। हमने अपने आसपास एक ऐसा घेरा खींच लिया है कि हम उस घेरे से बाहर निकल कर बाहर के सुख दुख दोनों को पहचानने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं। अगर इस सुख दुख के बीच के हिस्से को भी हम समझ जाए तो हमारा जीवन सफल है।
इसी दुख के बारे में सोचकर दुख से छुटकारा पाने के लिए जब हम खुद को समाप्त करने के बारे में सोचते हैं। तो दुख बड़ा दिखने लगता है। मन में इतना ज्यादा द्वेष बैठ जाता है ।दुख अनावश्यक आवश्यक रूप से हमारे मस्तिष्क में छा जाता है ।हम कुछ नहीं सोच पाते ।आज भी शहर माहौल में जिस तरह का घेरा हम अपने चारों ओर लपेटे हुए हैं ।उससे हमें दुख अधिक सुख कम मिलेगा। जबकि इसके विपरीत अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं जिस ढंग से एक गांव के लोग पूर्ण कर लेते हैं ।तो उनके चारों तरफ सुख का घेरा अधिक होता है ।
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सुधीर सिंह सुधाकर
७७०३८०२१२१
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