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अश्रुधार,संवेदित हृदय
चीख-चीख पुकार करे
लाज़ बचालो मेरी तुम 
निर्लज,निर्दयी भेड़ियों से
शासन-प्रशासन कर्तव्यविहीन
अब लड़ाई स्वयं लड़नी होगी
मृत-आत्मा होकर भी अपराधीयों को सज़ा दिलानी होगी
अन्तिम आस न्यायालय से
वाद-प्रतिवाद  भी करनी होगी 
निर्लज सत्तासीनों को उनकी औकात दिखानी होगी
✍कमलेश निराला
गोपालगंज बिहार

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