विधा- काव्य
सोलह सिंगार से होकर तैयार
दरवाजे पर बेटी कर रही है इंतजार
हाथों में उसके मेहंदी लगी है
पर आंखें उसकी दरवाजे पर गड़ी है
न जाने मेरे बाबा कब आएंगे
आकर मुझे डोली में बिठाएंगे
पूरी हो रही है मां की आज बरसों की इच्छा
पापा सब कर रहे हैं तुम्हारी प्रतीक्षा
पता है यह समय बहुत भारी है
तुम्हारे ऊपर देश की जिम्मेदारी है
मन में देश के प्रति निष्ठा और सम्मान है
पर क्या करें दिल में भी तो कुछ अरमान है
तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं लगता है अच्छा
सिर्फ तुम्हारा ही प्यार लगता है सच्चा
आकर मुझे बाबा डोली में तो बैठा दो
मेरे लिए अपना यह फर्ज तो निभा दो
तूमने किया था वादा इस बार लौट आऊंगा मैं
अपने हाथों से तुम्हें डोली में बिठाऊगा मैं
पर बाबा तुम तो ना आए आयी तुम्हारी मौत की खबर
देश की मिट्टी का रंग दिखा गया अपना असर
आज फिर एक बार देश प्रेम जीत गया
सैनिक की बेटी को पड़ोसियों ने विदा किया
स्वरचित रचना
आभा चौहान
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कविता