महक

शीर्षक - महक
विधा -कविता
दिनांक: 25-12-2020
ये जो भीनी सी महक आ रही है
तेरे केशु की मुझे तड़पा रही है

यह किसी इत्र का जादू है 
या तेरी नेकी का सुरूर है
हर अदा बेहतरीन है
मुझे तुझ पर गुरूर है

निर्मल जल की तरह
तेरा मन है साफ
न किसी के लिए हीन भावना
न मन में द्वेष न पाप

तू कितनी पावन है
यह तुझे नहीं है पता
तू मासूम है इतनी
नहीं है तेरी कोई खता

तेरी यह महक 
 मेरे दिल में समाई है
तू मूरत है सुंदरता की
खुदा की बनाई है

स्वरचित रचना
आभा चौहान

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