किसान नहीं ईश्वर है तू!
सुन हुआ मैं हैरान
जाम में फंसे लोगों को
पानी , फल देंगे किसान!
ऐसे महान किसानों को
मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
स्वयं अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं
फिर भी देखो
इस परिस्थिति में भी
हमारी कितनी फिक्र कर रहे हैं।
हे धरती पुत्र!
आपने सदैव है चौंकाया
कभी बंजर भूमि
कभी सूखे खेतों को
अपने स्वेद कणों से है नहलाया,
विपरित परिस्थितियों में भी
झंझावातों से लड़कर अपने फसलों को है
बचाया;
स्वयं का देकर बलिदान भी
हमारे लिए खाद्यान्न है उगाया ।
ईश्वर पालक है, हम जानते हैं
पर देख न पाए कभी चक्षुओं से!
हो अन्न उगाकर हमें खिलाते
कदम कदम पर हमें दिख जाते
धूप बारिश में देखें तुझको
तर-बतर पसीने से नहाते।
तू ही साक्षात ईश्वर है!
जाने क्यूं हम समझ न पाते?
लेखक- मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार।
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कविता