ग़ज़ल
रदीफ़-हमें।
हर्फ़े-क़वाफ़ी-अत
क़ाफ़िया-हक़ीक़त
नापनी-२१२ २१२ २१२ २१२
जान से तेरी प्यारी रफ़ाक़त हमें।
ये न पूछो है कितनी मुहब्बत हमें।।
हाथ तेरा रहे हाथ में बस मिरे।
है बड़ी फिर न कोई भी आफ़त हमें।।
जुल्म कितने मुहब्बत में जग ने किये।
है ज़माने से यारब शिक़ायत हमें।।
डर नहीं अब है दुनिया का हमको सनम।
ना डरा अब सकेगी क़यामत हमें।।
इल्म हमको खुदा की इनायत का है।
ज़र्फ़ देती ख़ुदा की इबादत हमें।।
ख़्वाब में भी न तुमको जुदा देखते।
इतनी ज़्यादा है तुमसे मुहब्बत हमें।।
आँख में अब न तेरी नमी आयेगी।
बस दिखे सिर्फ़ इनमें नज़ाक़त हमें।।
है"बिसरिया"गिरफ्तार उल्फ़त में अब।
दो न कोई सनम अब नसीहत हमें।।
बिसरिया"कानपुरी"
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