(बार बार )
पता नहीं वो क्यो नजरें चुरा रहे थे
वो मुझसे कुछ बार बार छुपा रहे थे
इशारों ही इशारों की मोहब्बत थी मेरी
होठ अनकहे से लफ्ज़ बोल रहे थे
पता..............
या यूं कहें कि वह हमें सता रहे थे
मेरी नजरें टिकी थी चेहरे पर उनके
होठ अनकहे से लफ्ज़ बोल रहे थे
पता...........
बडी शिद्दत से वक्त के पल बीत रहे थे
कुछ कहे कैसे बार-बार सोचकर रहे थे
एक एक करके दोस्त विदा हो रहे थे
होठ अनकहे से लफ्ज़ बोल रहे थे
पता...........
महेश राठौर सोनू
गाँव राजपुर गढ़ी
जिला मु 0नगर
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कविता