नारी नारायणी
नारी जीवन रूप अनेक,
ममता समता भावन नेक।
स्नेहामृत गंग सम पावन,
मातु बहन बेटी रख टेक।
प्रथम सृष्टिजा नारी नमन,
सदा खिलाती लोक चमन।
करुणांचल पालित बचपन
जीवन जग नारी अवलम्ब।
सुप्रीति हृदय वसुधा विशाल,
अरुणाभ उषा नीलाभ भाल,
उदार मातु वात्सल्य सिन्धु,
नारी नरजीवन हो निहाल।
गंगा निश्छल भाव तरंग,
आनंद लोक चारु मृदंग।
गृहलक्ष्मी तनया भरे रंग,
परहित नारी बहुरूप जंग।
संकोच मनसि सुप्रीति नयन,
अर्पित जीवन सहिष्णु मन,
हर कार्य निपुण शिक्षायतन,
अविराम दिखाए अपनापन।
नारी श्रद्धा लज्जा विनत,
आकूल हित सन्तान निरत,
सुख चैन मिटा लुटा जीवन,
सेवा सपूत साजन अविरत।
नारी जगत नवशक्ति रूप,
कराल काल काली स्वरूप।
स्वस्ति लोक निरत अचराचर,
वैज्ञानिक उच्चासन पद चढ़।
बेटी बहन अब सबल लोक,
अम्ब बहू निर्भय दुख रोक।
नित शाश्वत मानक चिन्तक,
बनी शासक हरे जग शोक।
नारायणि नारायण सम रूप,
आदिशक्ति जग मातु स्वरूप।
पूज्या नारी देवासुर नर,
जीवन संगी प्रियम दिलवर।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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कविता