मातृशक्ति को समर्पित मेरे मनोभाव
दिया सम्मान का
संवेदनाओं की स्याही ,,,
भरकर आज,,,,
न जाने क्या-क्या ,,,,,,
लिखा जाएगा,,,,,?
*यत्र नारी पूज्यते*,,,,
*तत्र देवता रम्यते*,,,,,
स्वर्णिम रश्मियों से भरी,,,,,
इन पंक्तियों का अर्थ ,,,,
जाने कब,,,,?
जीवन में उतारा जाएगा,,,,,।
ख़ून से सिंचित करती,,,
तू प्रकृति के आंचल को,,,,
फिर क्यों बनते,,,,,?
अनजान सभी,,,,,,
सोच रही हूं मैं ,,,,,,,
संस्कार की दहलीज पर ,,,,
कब ,,,,?
दिया,,,,,,,
सम्मान का जलाया जाएगा,,,,,,,।
नव रसों की खान,,,
बताते हैं तुझे,,,
मगर कब,,,,,,?
सेहरा विश्वास का ,,,
तुझ पर बांधा जाएगा,,,,,,।
*मधु वैष्णव "मान्या"*
विधा मुक्त रचना,,,जोधपुर,, राजस्थान
Tags:
कविता