नारी-वर्तमान परिप्रेक्ष्य

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
                  नारी-वर्तमान परिप्रेक्ष्य
        
      नारी तू  अबला नहीं अब
खुद पर भरोसा करके देख
असंभव भी संभव हो जायेगा
सीने  में जोश जरा तू भर के देख
धरती से लेकर आकाश तक
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं: जिसमें
नारी ने  अपना परचम न लहराया हो
ऐसा कोई काम नहीं।                                                           जिसे नारी ने  न कर दिखाया  हो
माना यह कार्य भारी है       फिर भी नारी 
की अपने अस्तित्व के लिए  जंग जारी है

 अब मै नारी हूं नये  युग की
मै अपनी अलग पहचान बनाती हूं
बरसों  पहले  तुमने जिस नारी को देखा
झुकी हुई  नज़रे  सहमी हुई  आवाज
दिन भर  सहती  अत्याचार   
पर उफ तक न करे लाचार
लेकिन अब  नारी की बदली है पहचान
अब वह कठपुतली नहीं है
महिषासुरमर्दिनी बन कर
अत्याचारियों का करती है दमन

पर नहीं आज की ऐसी नारी
आज मां काली मां दुर्गा बन
दमन करे   हर अन्याय का
 • भारत वर्ष   मे नारी को अबला
कहा जाता है      लेकिन हमारा  इतिहास
 तै अनगिनत वीरांगनाओं से  ओत प्रोत है  


कविता मोटवानी बिलासपुर छत्तीसगढ़
२६-२-२०२१

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