अपनो के साथ
कोरोना का रोना, रोना
निसंदेह लाजमी
वक्त के हाथों मजबूर
क्या करें हम भी
कभी - कभी लगता मुझे
ईश्वर की ही है यह चाल
चेतावनी दे रहा वह
सुधर जाओ मेरे बच्चों
न भुलो
यह मानव जीवन बेमिसाल
इंसानियत को ताक पर रखकर
न बढाओ धरा पर अत्याचार
विवश न करो मुझे
मैं मचाऊँ हाहाकर
यह मुझे अच्छे से ज्ञात
कलयुगी माहौल में
सत्कर्म की बात करना
तुमको लगेगीं बकवास
हर इंसा सोच ले गर
हर हाल में
न करुँगा मैं
किसी का भी बुरा
बस इतना ही कर लिया तुमने
ईश्वर - अल्लाह - जीजस - नानक
जिस रुप में देखते हो मुझे
मुझे पाओगें अपने ही साथ
इस पहल से
जागृत होंगी ऐसी किरणें
कोरोना क्या चीज
हर बुराई का
हो जायेंगा विनाश
कवि हो या आम इंसान
उसकी कल्पनाओं की
उडान के लिये
सरकार ने नही लगायी
किसी भी तरह की रोकथाम
उसी के चलते
मैने भी कर लिया साहस
आज दे दूं
यही काव्य रुपी पैगाम
सतीश लाखोटिया
नागपुर महाराष्ट्र
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कविता