राष्ट्र प्रेम यदि करते हो तो, फिर क्यों दंगा होता है।
आपस के झगड़ो में आहत, अमर तिरंगा होता है।।
जाति धर्म की दीवारों को, तोड़ नही सकते है क्या।
अलगू जुम्मन सा रिश्ता हम, जोड़ नही सकते है क्या।।
मुझको तुम यह बतलाओ, क्यो राष्ट्रवाद अब घायल है।
यदि हम एक रहे होते तो, रिपु भी होता कायल है।।
उलझे उलझे दिखते नेताजी, उलझन में है वोटो की।
भारत की जनता को चिंता, काले धन के नोटों को।।
सीमा पर मरते जवान के, सीने का दर्द नहीं दिखता।
घर मे घुसने वाला कोई, दहशत गर्द नही दिखता।।
देश प्रेम की एक कल्पना, लगती मुझको थोथी सी।
हर इक किताब संविधान की, लगती पूजा पोथी सी।।
प्यारे भारत के वासी तुम, राष्ट्र वाद को याद करो।
भूख मिटाकर पेटो की तुम, भारत को आबाद करो।।
मन में कायम देश प्रेम हो,यही पलक की अभिलाषा।
द्वेष-भाव का त्याग करें सब, ऐसी मेरी है आशा।।
पलक जैन
Tags:
कविता