ज़िन्दगी तुम, तो हो अनोखा,
हर लम्हा, जुदा रंग ओ किस्म,
तुम्हें बस मेरे यहीं कहना,
मत करो तुम यूं बदमाशी
मोहब्बत है जितना तुमसे,
उतना ही नफ़रत भी है,
तुम हो दोनों के काबिल,
बस तुम्हारा सूरत है प्यारा
तुमसे तो बाते, हरदम होती है,
इक रोज़, बिछड़ जाते है कई,
तुम्हे क्या बताऊं मै अब,
डर लगता है तुमसे बड़ा
आगे जितना जाता हूं,
बिछड़े डगर के याद आते है,
जिसमे चलकर आया मै आज,
वहीं राह के याद फिर क्यों आते है
तुम्हारा रूह मेने तो नहीं देखा,
बस एहसास किया तुम्हे तो,
शब दिन, शाम सहर बस एहसास
एहसास भरा है तुममें तो
क्या जाना मेंने अब तक,
सही से भला नहीं जान पाया,
अक्स है तुम्हारी काले,
उजाला कर भी दो अब ,
ए ज़िन्दगी
मानव डे
(असम,बोंगाईगांव)
पूर्वोत्तर राज्य
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कविता