अबकी परधानी तोहरे नांउ।
तोहरै हल्ला चारिउ ओरी,
चर्चा गांउ गिराउं।। अबकी..
देखा एक बात मोरि माना,
करा तैयार तू आपन दुल्हिन,
अबकी सीट जनाना
नवा नवा लूगा पहिरावा,
घूंघुट लहरै पूरे गांउ।। अबकी..
अबहीं से शुरू करा कन्वासिंग,
चौराहा पै टाइम पासिंग,
निरहू घुरहू और कतवारू,
एक ओरियै से चाय पियाउ।।अबकी..
रजनीगंधा जेबी मा डावा,
सुर्ती तमाखू पान मसाला,
जेजे मिलत रहैं पकड़ावा।
जेतना गंजेड़ी अहां गांउ में,
सबकै पहिले चिलम भराउ।।अबकी..
महुआ मांगैं अंगूरी देव,
देसी नाय अंग्रेजी वाली,
अद्धी मांगैं पूरी देव।
क्वाटर कहैं खंभा पकड़ाउ।।अबकी..
बाबू माई काकी बोला,
जे केउ होंय पुरनका दुश्मन,
वोनहूं के मने कै गांठि जा खोला।
मिला हहरि जेस मेला में बिछुड़्या,
गोड़वा पै फाटि परा,जय बोला।
जहां मिलैं काने रस घोरा,
देखा जिन ठाउं कुठाउं।।अबकी..
ललका के दुआरे नलका लाग,
नन्हका के जियरा सोलगति आग,
काने मा फूंक मारि के वोनका,
भट्टी यस पहिले दहकाउ।।अबकी..
बभनौटी मा बाढ़ी झगड़ा,
नापदान नाली कै लफड़ा,
झगरू पाटेन सरकारी गड़हा,
खड़ा कै लेहेन आपन मड़हा,
मंगरु क कहा देंय दरखास,
लड़ैं मरैं यस ताव देवाउ।।अबकी..
सादर साभार..
हरि नाथ शुक्ल "हरि"
सुल्तानपुर,उत्तर प्रदेश.
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कविता