नारी नहीं नारायणी है जयंती मंगला काली है ।
बेटी बेटी नहीं बेटी हर घर का मान बढ़ाने वाली है ।।
नवरात्र में पूजा जाता और फिर नारी का अपमान किया जाता ।
फिर कैसे यह सबला अबला नारी क्यों बन जाती है ?
दुष्कर्मी हत्यारे दुराचारी नारी को ही हवस का पात्र बनाते हैं ।
नवरात्र में नारी पूजक बन घर में कंचक जिवाते है ।।
क्या उन्हें पता नहीं जिस नारी की कोख को तुम गन्दा करते ।
उस नारी के ही बल पर तुम नित नया जीवन पाते ।।
पिंड हमेशा दो बनते जो नर और नारी में बदल जाते ।
जीवन के चक्र में तो सब एक समान ही चलते जाते ।।
बचपन जवानी और बुढ़ापे की नियति भी इक जैसी ही होती है ।
बच्चों को दादा दादी की कहानी सुनाना भी इक जैसी होती है ।
शिव बने अर्धनारीश्वर जिनमें नर नारी दोनों समा जाते ।
सती शिव के ध्यान में मग्न सारे नर नारी मुक्ती पा जाते ।।
नारी नहीं कमजोर किसी से आसमान को छूकर आती ।
जयंती मंगला काली बन सृष्टि संचालक कहलाती ।।
प्रकृति भी मां के रुप में पल पल हम पर प्रेम दर्शाती है ।
फूलों फलों और कलियों से सारे उपवन को महका जाती है ।।
जीवन दर्शन नारी में खोजो जो प्रथम गुरु कहलाती है ।
म से मम्मी प से पापा दादा दादी की पहचान कराती है ।
हाथ पकड़ कर चलना सिखाया फिर उसका अपमान करो ।
नवरात्र में ही नहीं जीवन के हर पल में नारी का सम्मान करो ।।
यदि तुम नारी का सम्मान करोगे तो नारी बलिहारी जायेंगी ।
जीवन के हर छण हर पहलू में तुम पर खूब प्यार बरसायेगी।
नारी की शक्ति को पहचान नारी का तुम हर पल सम्मान करो ।
नवरात्र नारी पर्व है इसको समझ नारी शक्ति का संज्ञान करो ।।
इस हिन्द की संस्कृति भी नारी के नाम से ही तो जानी जाती ।
आर्य वृत भरतखण्ड की धरती भारत माता से पहचानी जाती ।।
हर नदी सरोवर और झीलैं सबमें ही नारी शक्ति समाती है ।
प्रकृति सुरम्य बनकर माता रूप में हमपर प्रेम बरसाती है ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता