मोहब्बत का नशा

मोहब्बत का नशा

मोहब्बत का नशा 
बड़ा अजीब सा होता है। 
जब मोहब्बत पास हो तो 
दिल मोहब्बत से घबराता है। 
और दूर हो तो मिलने को
बार बार बुलाता है।
और दिलों में एक 
आग सी जलाये रखता हैं।। 

दूर होकर भी दिल के 
पास होने का एहसास हो। 
मेरे दिलकी तुम ही साँस हो। 
तभी तो ये पागल है
और तुम्हें याद करता है। 
तुम जहां से गये थे 
मुझे अकेला छोड़कर। 
हम आज भी खड़े है 
वही पर तुम्हारे लिये।।

जिंदगी भी क्या है
कभी हंसती है तो। 
कभी अपनो के 
लिए रोती है। 
और जीने की 
जिद्द करती है।
जबकि उसे पता है 
कि अकेले ही जाना है। 
फिर भी साथ रहने 
की जिद्द करती है।। 

चाँद जब भी निकलता है
चंदानी उसे खोज लेती है। 
फिर आँखों ही आँखों से 
आपस में कुछ कहते है। 
और दोनों की आँखों से
मोती जैसे आँसू बहते हैं।
और रात की हरियाली पर
सफेद चादर बिछा देती हैं।
और मेहबूबा को मेहबूब से
सुहानी रातमें मिला देते हैं।। 

ठंडी हवाओं के झोंको से
रात रानी की महक से। 
एक दूसरे की बाहों में
शमा जाते हैं और 
प्यार के सागर में डूब जाते हैं। 
और ख्याबों से भरी 
दुनियां में खो जाते हैं। 
देखकर राधाकृष्ण भी
ऊपर से मुस्काराते हैं।
और मोहब्बत करने वालो  
को शुभ आशीष देते हैं।। 

जय जिनेंद्र देव 
संजय जैन, मुंबई
10/04/2021

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